Oct 31, 2021

वैरिकोसवेन्स: होमियोपैथी में पायें समाधान

 

वैरिकोसवेन्स: होमियोपैथी में पायें समाधान 

आपने अक्सर ऐसे व्यक्ति देखें होंगे जिनके पैर, पेट आदि  में फूली हुई शिराओं युक्त गुच्छे जैसे संरचना दिखती है, जो कि रक्त शिराओं के फूलकर कर टेढ़े मेढे हो जाने के कारण होता है, जिसे वेरीकोस वेन कहा जाता है|

समान्यतः सभी जानते हैं शिराओं का कार्य रक्त को शरीर के अन्य भागों से हृदय तक ले जाने का होता है, यह कार्य गुरुत्वाकर्षण के विपरीत होता है, इसलिए शिराओं के अन्दर एक दिशा वाले कपाट (वाल्व) बने होते है जिनका कार्य रक्त को शिराओं में नीचे गिरने से रोकना होता है, इन वाल्व में खराबी आने,रक्त का संचय अधिक हो जाने, अथवा कोई अवरोध आ जाने के कारन शिराए फ़ैल जाती हैं, एवं फूलकर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती है| 

सामान्यतः शुरुआत में इसके कारण कोई विशेष समस्या उत्पन्न नहीं होती है सिर्फ यह सौन्दर्य समस्या प्रतीत होती है, किन्तु अधिक समय तक यही स्थिति बने रहने पर प्रभावित स्थान में दर्द, झुनझुनाहट, त्वचा का बदरंग होना, एवं घाव (vericose ulcer) आदि समस्याएं उत्पन्न होने लगती है | इसलिए प्राम्भिक अवस्था में ही उचित देखभाल एवं उपचार आवश्यक हो जाता है |

कारण

इस समस्या का कारण पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं है, पर ऐसा माना जाता है कि अधिक रक्त संचय हो जाने के कारण शिराएँ शिथिल होने लगाती हैं, पेट एवं लीवर के लिम्फ चैनल में अवरोध आना भी प्रमुख कारणों में से एक है | 

गर्भावस्था के दौरान वेरीकोस वेन होना सामान्य लक्षण है जो अक्सर प्रसव पश्चात् सामान्य हो जाता है, ऐसा भ्रूण के वजन, हार्मोनल बदलाव, और हृदय द्वारा अतिरिक्त रक्त पम्प करने (गर्भावस्था में हृदय द्वारा भ्रूण के विकास के लिए सामान्य से अधिक रक्त प्रवाह होता है ) के कारण होता है |

लक्षण

कई लोगों के लिए वैरिकोस वेन सामान्य समस्या होती है, जो सिर्फ देखने में अच्छा नहीं लगता है, लेकिन कुछ लोगों को इससे दर्द और असुविधा हो सकती है, इसके लक्षण निम्न हो सकते हैं :

1.   






1. रस्सियों की तरह दिखने वाली मुड़ी, सूजी और फूली हुई नसें, जो गहरी बैंगनी या नीली दिखती हैं |

    2.    पैरों में दर्द, झुनझुनाहट अथवा भारीपन महसूस होना |

    3.    पैरों में एठन, निचले हिस्से में सुजन एवं जलन का अनुभव होना |

   4.    लम्बे समय तक खड़े अथवा बैठे रहने के बाद दर्द होना |

    5.    प्रभावित स्थान में खुजली होना, त्वचा में  गहरे नील अथवा काले रंग के धब्बे दिखना |

6.    पैरों में घाव (ulcer) होना |

बचाव

1.    नियमित टहलना एवं व्यायाम करना चाहिए जिससे कि रक्त का परिसचरण सुचारू रूप से हो सके |

2.    अपने वजन को संतुलित रखें, यदि वजन अधिक है तो उसे कम करने का प्रयास करें | आहार एवं जीवनशैली सम्बंधित नियमित कार्यों में परिवर्तन लायें |

3.    सुविधयुक्त जूते एवं चप्पलों का उपयोग करें, अधिक हील वाले जूतों का उपयोग करने से बचे |

4.    संभव हो तो पैरों को अधिक देर तक लटकाकर न बैठें, बीच में बीच में टहलते रहे एवं थोड़ी देर के लिए पैरो को ऊपर रखें, जिससे कि पैरों का रक्त परिसंचरण सुचारू रहे |

5.    सोते समय पैर वाले हिस्से को थोडा ऊपर रखे |

होमियोपैथी में वैरिकोस वेन्स का समाधान :

होमियोपैथी उपचार लेते समय बीमारी का नाम ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होता है, बल्कि मरीज के लक्षण ही प्रमुख रूप से औषधि निर्वाचन में सहायक होते हैं |

मरीज के सामान्य लक्षण, पैतृक इतिहास, मानसिक लक्षण, समस्या के बढ़ने अथवा घटने के कारणों कि जानकारी के आधार पर होमियोपैथिक दवाइयां दी जानी चाहिए, यदि मरीज के लक्षणों का भली भांति अध्यन कर उसके समरूप दवा दी जाये तो कोई भी रोग



आसानी से पुर्णतः ठीक किया जा सकता है | वैरिकोस वेन्स के इलाज में उपयोगी दवा के बारे में यहाँ संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है, जो कि चिकित्सकीय निर्देश को नजरअंदाज़ करने के लिए नहीं है, सिर्फ सामान्य जानकारी हेतु है ताकि आमलोग भी होमियोपैथी के प्रति जागरूक हो सके :

हैमामेलिस वैरिकोस वेन्स हेतु उपयोगी दवा है, यह शिराओं की बाहरी आवरण को मजबूत करती है एवं फैली हुई शिराओं को संकुचित करती है, इसका आतंरिक एवं बाह्य उपयोग दोनों ही लाभदायक है, यदि रक्त प्रवाह में कोई अवरोध हो रहा हो तो अन्य औषधि जैसे अर्निका, बेलिस, फेरममेट, पल्सेटिला, लायकोपोडियम आदि आवश्यकतानुसार उपयोग किया जा सकता है, किन्तु इन दवाओं के लिए अन्य लक्षणों पर भी गौर किया जाना आवश्यक है |

 इस प्रकार के केस में इसके जुड़े हुए अन्य पहलुओं पर भी गौर करना आवश्यक है, समान्यतः लीवर, स्प्लीन, युटेरस, पाचन की समस्याएं जैसे कब्ज़ आदि भी वेरीकोस समस्या से जुडी हुई होती है| लीवर के आकार में वृद्धि( Hepatomegali), स्प्लीन में वृद्धि (Splenomegali), का पता लगाया जाना चाहिए| इस प्रकार यदि कोई जुडी हुई समस्या पाई जाती है तो कार्डस ऍम, चेलिडोनियम प्रभावकारी है |रोग से जुडी हुई समस्याओं के निदान से भी शिराए पुनः अपने मूल आकार में वापस आ जाती है |

 

जब भी भी दोनों पैरों में, पेट, अंडकोष, नितम्ब आदि कही भी वेरिकोस वेन्स उपस्थित हो तो व्यक्ति की बीमारी का इतिहास, पैतृक इतिहास, वर्तमान बीमारी के आधार पर उत्पत्ति का कारण पता लगाया जाना चाहिए, यदि यह चिकित्सक द्वारा सुनिश्चित कर लिया जाये तो फिर रोग को आसानी से ठीक किया जा सकता है |


एसिड फ्लौर औषधि इस प्रकार के मामलों में बेहद उपयोगी है, यह वैरिकोस ulcer हेतु भी लाभदायक है, इसका मुख्य लक्षण है मरीज को ठण्ड से आराम मिलता है और गर्म चीजों से, कुछ ओढने से और गर्म हवा से तकलीफ में वृद्धि होती है | साईलीशिया भी इस प्रकार के रोग में कारगर है किन्तु इसका रोगी शीतप्रधान होता है, उसे जरा भी ठण्ड पसंद नहीं होती है, ज्यदातर ओढ़ कर गर्म कमरे में रहना चाहता है |

होमियोपैथी चिकित्सा में लक्षणों की विशेषता अधिक महत्त्वपूर्ण है, आप यह समझ सकते हैं कि लक्षणों के आधार पर ही दवा का चुना जाना आवश्यक होता है | इस प्रकार जटिल रोगों का इलाज भी होमियोपैथी में संभव है | चिकित्साकाल के दौरान मरीज को भी अपने लक्षणों में आने वाले परिवर्तन पर ध्यान देना चाहिए एवं समय समय पर चिकित्सक को भी अवगत करते रहें |

 

डॉ. भूपेंद्र गुप्ता

होमियोपैथिक चिकित्सक एवं सलाहकार

डॉ. गुप्ता होमियोपैथिक चिकित्सालय

कटघोरा, कोरबा , छत्तीसगढ़

मो. नं. – 9993697234  

 

 

 



 

Oct 23, 2021

जोड़ों का दर्द (Rheumatism) और होमियोपैथिक निदान



Rheumatism
एक प्रकार का जोड़ों का संक्रमण हैं जिसमे आम बोलचाल में आर्थराइटिस कहा जाता है | यह संन्य तौर पर जोड़ों में होने वाली सामान्य विकृति है जो उम्र बढ़ने के साथ उत्पन्न होने लगती है, जोड़ों का दर्द और संक्रमण सामन्यतः कुछ दिनों तक रहता है फिर लगभग सामान्य जैसा हो जाता है, परन्तु ऐसा बार बार होते रहता है, दर्द उभरने का कारन अलग अलग व्यक्तियों में भिन्न भिन्न हो सकता है जो मौसम, कार्य की प्रकृति, जीवनशैली, भोजन आदि पर निर्भर करता है |


होमियोपैथी:

एलोपैथिक पेनकिलर कुछ हद तक तो आराम देते हैं, परन्तु यह दीर्घकालीन अथवा स्थायी नहीं होता है , वही लम्बे समय तक दवाइयां लेते रहने के कारन लीवर एवं किडनी में दुष्प्रभाव होने कि संभावना होती है, ज्यदातर लोग अब इस विषय को समझने लगे हैं एवं वैकल्पिक उपचार कि ओर आर्कर्षित हो रहे हैं| दुष्प्रभाव रहित, स्थायी उपचार देने में सक्षम होमियोपैथी फ़िलहाल सर्वश्रेष्ट विकल्प होगा | ज्यदातर लोग सभी प्रकार के इलाज आजमाने के बाद ही होमियोपैथी में आते हैं, ऐसे में उनका रोग काफी हद तक बढ़ चूका होता है, कई दवाइयां लेने के कारन शरीर की क्रिया में भी परिवर्तन आ चूका होता है, इसलिए ऐसी स्थिति में धैर्य के साथ चिकित्सा करना जरुरी हो जाता है, यदि किसी रोग के आरम्भ से ही होमियोपैथी लिया जाये तो रोग गंभीर अवस्था में नहीं पहुचता है एवं उपचार शीघ्र हो सकता है |

इस लेख में जोड़ों के दर्द से सम्बंधित दवाओं का वर्ना किया जा रहा है, जो कि पुर्णतः ज्ञानवर्धन के लिए है ताकि आम लोग भी होमियोपैथी के प्रति अपनी जिज्ञासा शांत कर सकें, बेहतर उपचार के लिए अपने होमियोपैथी चिकित्सक कि सलाह अवश्य लें |

प्रत्येक मरीज के लक्षण अपने आप में भिन्न होते हैं, सभी फैक्टर, मौसम परिवर्तन, भोजन आदि अलग अलग लोंगों को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करते हैं, इसी आधार पर ही होमियोपैथिक दवाओं का चुनाव किया जाता है |

रसटाक्स एक प्रमुख औषधि है जो जोड़ों के दर्द में आत्य्धिक उपयोग की जाती है, यह ऐसे मरीज के लिए लाभदायक है जिसकी तकलीफ देर तक बैठे रहने से बढ़ जाती है, एवं उठने में आत्य्धिक तकलीफ होती है, किन्तु थोड़ी दूर चलने के बाद कुछ् आराम महसूस होने लगता है,, गीला होने, भीग जाने एवं बादल वाले मौसम में मरीज का दर्द बढ़ जाता है | मुख्यतः जकडन एवं घाव जैसा दर्द जोड़ों में महसूस होता है जो चलते फिरते रहने से कम रहता है | यह निचले हिस्सों के दर्द में ज्यादा फायदेमंद है, हालाँकि यह सभी हिस्सों वाले जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों के दर्द, पुराने चोट के दर्द में फायदेमंद हैं |


ब्रायोनिया औषधि में जरा भी हिलने डुलने अथवा चलने से दर्द बढ़ जाता है, कई बार मरीज बिलकुल स्थिर बैठा रहता है; हिलने से भी परहेज करता है ताकि उसका दर्द ना बढ़ जाये (रसटाक्स में इसके विपरीत लक्षण है)| इसका दर्द मुख्यतः मांसपेशियों में रहता है, जोड़ वाला हिस्सा गर्म, लाल एवं सुजन लिए हुए होता है, छूने एवं दबाने से भी दर्द बढ़ जाता है | ब्रायोनिया, लेडमपाल, कल्चिकम, नक्स वोम औषधि में भी चलने से दर्द बढ़ जाता है, इन औषधियों को इनके अन्य लक्षणों के आधार पर भी चुना जाता है |

पल्सेटिला औषधि में दर्द की जगह बार बार बदलते रहती है, विभिन्न जोड़ों में अलग अलग समय में दर्द देता रहता है, गर्मी और शाम के समय दर्द का बढ़ जाना एवं ठण्ड से दर्द का कम हो जाना इसका प्रमुख लक्षण है, लेडम दवा में भी ठण्ड से दर्द कम हो जाने का लक्षण है | पल्सेटिला का रोगी दर्द कि वजह से शांत नहीं बैठ पाता है, दर्द के कारन वह इधर उधर टहलने के लिए मजबूर हो जाता है, धीरे धीरे चलते रहने से उसे आराम मिलता है |




काल्मिया औषधि में भी पल्सेटिला की तरह ही दर्द होता है किन्तु इसका दर्द सीने एवं शारीर के उपरी हिस्से में ज्यादा रहता है, ह्रदय रोग से सम्बंधित Rheumatic दर्द होने पर यह ज्यादा फायदेमंद है |

Rhododendron में जरा भी मौसम में परिवर्तन होता है दर्द शुरू हो जाता है या बढ़ जाता है, काफी हद तक यह रसटाक्स के सामान है; आराम करने से दर्द बढ़ता है, किन्तु इसमें ज्यादातर छोटे जोड़ों में दर्द ज्यदा पाया जाता है | हाथ के जोड़ों और उँगलियों के जोड़ों के दर्द में कोलोफायलम आत्यधिक फायदेमंद है |

 

Sep 7, 2021

 *Gastero Esophageal Reflux Disorder (GERD)*


IT is a syndrome resulting from oesophageal tissue damage as a result or regurgitation of gastric acid (stomach content) into the oesophagus.


*Causes*

1. Incompetence of lower oesophageal sphinctor. 

2. Slow or absent oesophagus clearance.

3. Delayed gastric evacuation.

4. Injury effects of reflex.


*Clinical feature*

- Heartburn (burning in chest)

-Regurgitation of sour or bitter gastric content in mouth

-Dyspepsia (Loss of appetite)


*Screening Test*

Barium meal examination

Upper endoscopy

Oesophageal manometry

Ambulatory oesophageal pH monitoring


Management

1. Avoidance of spicy , fatty food, tea, coffee, alcohal, cold drink, chocolate etc.

2. Reduce overweighted weight.

3. Avoidance of lying down within 3 hours of meal

4. Keep the head end of bed raised at least 6 inches.


Dr. Bhupendra Gupta

Jul 9, 2021

एनोरेक्सिया: खाने के प्रति विरक्ति एवं निदान

 

#एनोरेक्सिया खाने से संबंधित एक विकार है जिसमें व्यक्ति अपने वज़न और खाने को लेकर चिंता ग्रस्त हो जाता है.

कम खाने का विकार (एनोरेक्सिया) में वज़न बढ़ने के अनुचित भय के कारण शरीर ख़राब हो जाता है.
आमतौर पर खुद इसका पता लगाया जा सकता है।

इसके लक्षणों में भूखा रहकर या बहुत ज़्यादा व्यायाम के ज़रिए से सामान्य से कम वज़न बनाए रखने की कोशिश करना शामिल है.
अन्य लक्षण हैं-
माहवारी समय पर ना होना
चक्कर आना
नींद नही आना
बेहोशी महसूस होना
वज़न अत्यधिक कम हो जाना
अत्यधिक थकान लगना
कब्ज़ होना

एनोरेक्सिया एक मानसिक अवस्था है। जिसमे व्यक्ति अपने वजन को लेकर बहुत अधिक संजीदा हो जाते है। ऐसे में लोग अत्यधिक डाइटिंग व व्यायाम का सहारा लेते है। ऐसे में व्यक्तियों को लगता है की अगर वो भोजन का सेवन करेंगे तो मोटे हो जाएंगे। जिसके कारण उनका खान-पान का समय गलत हो जाता है।

खानपान में अनियमित एव कम खुराक लेने से उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

इलाज

उपचार में थैरेपी शामिल है

सामान्य वजन को बहाल करने के लिए चिकित्सा उपचार की जरूरत हो सकती है. बातचीत द्वारा चिकित्सा आत्मविश्वास बढ़ाने और व्यवहार में परिवर्तन लाने में मदद कर सकती है.

एनोरेक्सिया का इलाज चिकिस्तक विभिन्न तरीको से करते है।

मनोचिकिस्तक एनोरेक्सिया से पीड़ित लोगो का ध्यान केंद्रित करते है। उनके व्यवहार में थेरेपी के द्वारा बदलाव करने की कोशिश करते है। जिससे मरीजों को भोजन खाने की ललक लगे और वह पौष्टिक आहार का सेवन करे।

इसके उपचार में चिकिस्तक कुछ दवाओं की खुराक भी देते है। जिससे मरीज की चिंता व तनाव दूर हो सके।

होमियोपैथी ऐसे शारीरिक एवं मानसिक विकारों हेतु उपयुक्त है, शारीरिक एवं मानसिक लक्षणों को ध्यान रखकर उपयुक्त दवा द्वारा चिकित्सा होने पर विकार पूर्णतः समाप्त हो जाते हैं। #होमियोपैथी चिकित्सा #मानसिकविकारों को बिना किसी अन्य दुष्प्रभाव के ठीक करती है।

अगर वजन में अधिक गिरावट दिखाई देती है तो तुरंत स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती होने की सलाह दी जाती है। जिससे कुपोषण का सही तरीके से इलाज हो सके।
#korba #katghora #homoeopathy #Anorexia #psychiatricdisorders

Jun 6, 2021

Hypothyroidism and Homoeopathic Management

 

HYPOTHYROIDISM

 While not generally considered one of the "Hormones Of Youth", thyroid deficiency can increase your risk of age related disorders.Sub-optimal thyroid means sub-optimal metabolism, which translates into weight gain and its associated ills of heart disease, high blood pressure, diabetes and even cancer.

Unfortunately, blood tests only pick up the more frank cases of hypo-thyroidism. The standard blood test criteria is a low T4 and a high TSH (thyroid stimulating hormone). Because of this insensitivity, some doctors have dubbed sub-optimal thyroid as the "much mis-diagnosed malady."

A check list of common hypo-thyroid symptoms follows: 

CLINIC

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Dr. Bhupendra Gupta

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Dr. Gupta is a dedicated homoeopathic physician for his duty and has keen interest whatever he do. As a physician he is very kind and take much interest to listening patient empathetically. He uses latest method of selecting appropriate medicine for fast and stable result. You may ask any health related issue in this blog , email , phone call or you can contact Dr. Gupta personally.